आज के इस आर्टिकल में हम जानेंगे हम राखी क्यों मनाते हैं?, रक्षा बंधन की शुरुआत किसने की थी?, तथा रक्षाबंधन कब, क्यों मनाया जाता है, कैसे मनाये, इतिहास, कहानियां।
राखी का त्यौहार तो हम सभी को पता है इस दिन बहने अपने भाई को राखी बंधती है तथा यह त्यौहार भाई-बहन को स्नेह बंधन में बंधता है । रक्षा बंधन के दिन बहन अपने भाई के मस्तक पर टिका लगाकर रक्षा का बंधन बांधती है । भारतीय संस्कृति के अनुसार रक्षाबंधन का त्यौहार श्रावण माह के पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है और ये रक्षाबंधन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्त्व है ।
राखी अमीरी और गरीबी नहीं देखती, राखी में कच्चे सूत जैसे सस्ती रंगीन धागा , रेशमी धागा के साथ-साथ सोने-चाँदी जैसे महँगी भी हो सकती है । ऐसा भी नहीं की कोई बहन अपने भाई को सोने का राखी बांध दे तो ये किया हुआ वादा मजबूत हो जायेगा, रक्षाबंधन के दिन बहनें भगवान् से भाइयों के तरक्की तथा लम्बी उम्र के लिए प्रार्थना करती है ।
रक्षा बंधन के दिन सभी घरों में तरह-तरह के पकवाने बनती है, मेहमानों का आना जाना लगा रहता है तथा सभी भाइयों को अपने बहनों के आने का इंतज़ार रहता है । रक्षाबन्धन के दिन बाजारों में काफी भीड़-भाड रहती है लोग नये-नये कपडे तथा उपहार खरीदते है । हिन्दुओं का यह रक्षाबंधन त्यौहार सभी भाइयों और बहनों के प्यार को और भी मजबूत बनाता है, इस दिन सभी परिवार
एक हो जाते हैं और राखी, उपहार और मिठाइयाँ देकर अपना प्यार साझा करते है ।
रक्षा बंधन की शुरुआत कब और कैसे हुई?
रक्षा बंधन का शुरुआत कब हुआ ये तो किसी को नहीं पता, पर शास्त्रों के मान्यताओ और कई कथायों के अनुसार रक्षाबंधन से जुडी कई कहानियां मिलती है जो रक्षाबंधन जो रक्षाबंधन की शुरुआत की बात कहती है । इतिहास कहता है की “सिन्धु घाटी की सभ्यता” से रक्षाबंधन का इतिहास जुड़ा है । रक्षाबंधन एक ऐसा त्यौहार है जिसका इतिहास करीब 6 हजार शाल पुराना है, बताया जाता है की रक्षाबंधन की शुरुआत रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूँ ने की थी ।
मध्यकालीन युग में जब मुसलमान और राजपूतों के बिच युद्ध चल रही थी उसी दौरान चित्तोर के राजा का विधवा रानी कर्णावती ने शुल्तान बहादुरशाह से खतरा देखते हुए हुमायूँ को राखी भेजी थी तब हुमायूँ ने उनकी रक्षा करके उनको बहन का दर्जा दिया था ।
इसके अलावा रक्षाबंधन से जुडी कहानि में से एक ये भी है की असुरों का राजा बलि १०० यज्ञ पूर्ण कर अजेय हो गया। धरती पर अपना साम्राज्य स्थापित कर वह स्वर्ग का सिंहासन प्राप्त करने की तैयारी करने लगा। यह ज्ञात होने पर देवराज इंद्र चिंतित हो गए और भगवान विष्णु की शरण में पहुँचे। इंद्र ने भगवान विष्णु से स्वर्ग का सिंहासन बचाने की प्रार्थना की. तब वामन अवतार धारण कर भगवान विष्णु राजा बलि के दरबार में गए और उनसे भिक्षा की याचना की. राजा बलि दानवीर था. उसने वामन अवतार भगवान विष्णु को वचन दिया कि वह भिक्षा में जो भी मांगेगा, उसे प्रदान किया जायेगा।
भगवान विष्णु ने भिक्षा में तीन पग भूमि मांग ली. राजा बलि ने अपना वचन निभाते हुए वामन अवतार भगवान विष्णु को तीन पग भूमि दान में प्रदाय कर दी और कहा कि वह तीन पग भूमि नाप ले। भगवान विष्णु ने पहले पग में पृथ्वी को नाप लिया और दूसरे पग में स्वर्ग को. तीसरे पग के पूर्व ही राजा बलि भांप चुका था कि उसके समक्ष उपस्थित वामन कोई साधारण व्यक्ति नहीं है. उसने अपना शीश वामन रूपी भगवान विष्णु के आगे झुका दिया और उनसे तीसरा पग अपने शीश पर रखने का निवेदन दिया।
भगवान विष्णु ने वैसा ही किया।इस तरह राजा बलि अपना संपूर्ण राज्य गंवाकर पाताल लोक में रहने को विवश हो गया।पाताल लोक जाने के पूर्व राजा बलि की प्रार्थना पर भगवान विष्णु अपने वास्तविक रूप में आये. वे बलि की दानपूर्णता देख अत्यंत प्रसन्न थे. उन्होंने उससे वर मांगने को कहा.
राजा बलि बोला, “भगवान्! मेरा तो सर्वस्व चला गया है. मेरी आपसे बस यही प्रार्थना है कि आप हर घड़ी मेरे समक्ष रहें।
भगवान विष्णु ने तथास्तु कहा और राजा बलि के साथ पाताल लोक चले आये।
बैकुंठ में भगवान विष्णु की प्रतीक्षा कर रही देवी लक्ष्मी को जब यह सूचना मिली, तो वे चिंतित हो उठी. उन्होंने नारद मुनि को बुलाकर मंत्रणा की और इस समस्या का तोड़ पूछा. नारद मुनि ने उन्हें सुझाया कि वे राजा बलि को रक्षासूत्र बांधकर अपना भाई बना ले और उपहार स्वरूप भगवान विष्णु को मांग लें। तब देवी लक्ष्मी गरीब महिला का भेष धरकर पाताल लोक पहुँची और नारद के सुझाये अनुसार राजा बलि की कलाई में रक्षासूत्र बांधा.।
तब राजा बलि बोला, “आपको देने मेरे पास कुछ नहीं है.”
तब देवी लक्ष्मी अपने वास्तविक स्वरुप में आई और बोली, “आपके पास तो साक्षात भगवान विष्णु हैं. मुझे वही चाहिए.”
राजा बलि ने भगवान विष्णु को देवी लक्ष्मी के साथ जाने दिया. जाते-जाते भगवान विष्णु ने राजा बलि से कहा कि वे हर साल चार माह पाताल लोक में निवास करेंगे. वे चार माह ‘चतुर्दशी’ कहलाते हैं और देवशयनी एकादशी से प्रारंभ होकर देवउठनी एकादशी तक चलते हैं.
जिस दिन देवी लक्ष्मी ने राजा बलि को रक्षासूत्र बांधा था, वह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था. तब से वह दिन रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) के रूप में मनाया जाता है और उस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षासूत्र राखी बांधती हैं और भाई बहनों की रक्षा का वचन देते हैं। और भी बहुत सारी कहानिया है जो रक्षाबंधन का इतिहास बताता है ।
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Raksha bandhan पर बनी फिल्म कौन सी है?
वैसे तों रक्षाबंधन पर बनी फिल्म बहुत साडी है पर हाल में ही बॉलीवुड के एक्टर अक्षय कुमार का एक फिल्म आने वाली है जिसका ट्रेलर लौंच हो चूका है ।
तों कैसा लगा आज के हमारा यह आर्टिकल रक्षाबंधन क्यों मनाते है तथा इसका इतिहास क्या है अगर आपको इस पोस्ट से कुछ जानने को मिला होगा तो अपने दोस्तों और फैमिली के साथ शेयर करना न भूलें ।
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